नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 में ताइवान के
फोरमोस में हुई विमान दुर्घटना की गुत्थी अभी तक अनसुलझी है। कुछ का कहना
है कि इस दुर्घटना में जैसा की आधिकारिक रूप से बताया गया है कि वे सचमुच
दुर्घटना के शिकार होकर मारे गए थे। लेकिन कई का मानना है कि यह एक साजिश
थी और नेताजी को सुरक्षित निकल जाने के लिए यह साजिश रची गई। कई का मानना
है कि नेताजी इसके बाद सर्बिया चले गए तो कुछ का मानना है कि वे भारत में
भी कहीं गुमनाम जीवन गुजारने लगे। सच्चाई क्या है पिछले 70 साल से लोग
जानना चाहते हैं, लेकिन अभी तक इसका जवाब नहीं मिल पाया है।
नेताजी के वारिसों का एक धड़ा (जिसमें उनकी बेटी अनिता फाफ भी शामिल हैं) और सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के कुछ बुजुर्ग योद्धा मानते हैं कि विमान हादसे में नेताजी की मौत हुई थी और उनकी अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित रखी हुई हैं।
लेकिन, नेताजी के परिजन, प्रशंसक, शोध करने वाले हादसे की इस कहानी से सहमत
नहीं हैं। और, ऐसा मानने वालों की संख्या बहुत अधिक है। अनिता फाफ 2013
में कोलकाता आई थीं। उन्होंने कहा था कि यह नेताजी के लिए शानदार घर वापसी
होती। उनकी अस्थियां भारत लाईं जातीं और उन्हें यहां गंगा में प्रवाहित
किया जाता। नेताजी के वंशज और हारवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सौगत रॉय
भी यही मानते हैं कि नेताजी की मौत विमान हादसे में हुई थी। वह इस हादसे
में जिंदा बच गए लोगों की गवाही का पुरजोर हवाला देते हैं।
भारत सरकार ने नेताजी के मौत के मामले की जांच के लिए समय-समय पर कई
समितियां बनाई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। शाहनवाज खान समिति (1956),
जी.डी.खोसला समिति (1970) और एम.के.मुखर्जी आयोग (2006) ने जांच तो की
लेकिन नतीजा नहीं निकला। शाहनवाज खान समिति और जी.डी.खोसला समिति ने माना
कि विमान हादसे में नेताजी की मौत हुई थी, लेकिन मुखर्जी आयोग ने इस बात को
खारिज कर दिया कि नेताजी की मौत किसी हादसे में हो चुकी है। हालांकि सरकार
ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की।
वहीं, इस मामले में शोध करने वाले और लेखक अनुज धर मुखर्जी आयोग के नतीजों से सहमत हैं। धर ने कहा कि मुखर्जी आयोग को और मुझे भी भेजे गए पत्र में ताइवान के अधिकारियों ने यही कहा है कि 18 अगस्त, 1945 को कोई हादसा नहीं हुआ था।
उन्होंने कहा कि ऐसी कई गोपनीय फाइलें हैं, जो साबित कर देंगी कि विमान हादसे की बात जापानियों और नेताजी ने जान बूझकर फैलाई थी ताकि उन्हें सोवियत रूस निकल जाने का मौका मिल सके। लेकिन, नेताजी की सहयोगी रह चुकीं लक्ष्मी सहगल इससे सहमत नहीं थीं। उनका कहना था कि विमान हादसा और उसमें नेताजी की मौत एक सच्चाई है। इसका रिकॉर्ड इसलिए नहीं है, क्योंकि हारने से पहले जापानियों ने अपने युद्ध अपराधों पर पर्दा डालने के लिए सभी दस्तावेज नष्ट कर दिए थे। नेताजी के विमान हादसे के दस्तावेज इसी की भेंट चढ़ गए।
अब नेताजी के घरवालों और उनके चाहने वालों की मांग है कि केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार इस मामले से जुड़ी सभी फाइलों को सार्वजनिक करे। इससे साफ हो जाएगा कि विमान हादसे में मरने वाला एक जापानी सैनिक इचिरो ओकुरा था, न कि नेताजी।
नेताजी के सहयोगी कर्नल हबीबुररहमान ने शाहनवाज समिति से कहा था कि नेताजी की मौत विमान हादसे में हुई थी। कहते हैं कि आखिरी वक्त में कर्नल रहमान, नेताजी के साथ थे और हादसे में बच गए थे। लेकिन हादसे की कहानी से असहमत लोगों का कहना है कि कर्नल रहमान ने सच नहीं बोला और उन्होंने ऐसा नेताजी के कहने पर ही किया।
नेताजी के बड़े भाई शरत चंद्र बोस ने कर्नल रहमान से पूछताछ की थी। शरत
चंद्र बोस के पोते चंद्र कुमार ने अपने पिता अमीय नाथ के हवाल से बताया कि
शरत चंद्र बोस ने घंटों कर्नल रहमान से विमान हादसे के बारे में पूछताछ की
थी और फिर उनकी बात को खारिज कर दिया था।
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